दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि वह आधार कार्ड को मतदान के समय पहचान के 12वें दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार करे। यह फैसला उन लाखों मतदाताओं के लिए बड़ी राहत है, जिनके पास मतदान करने के लिए आवश्यक 11 स्वीकृत दस्तावेज़ों में से कोई भी नहीं है, लेकिन उनके पास आधार कार्ड है।
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क्या है पूरा मामला?
दरअसल, यह मामला एक जनहित याचिका (PIL) से जुड़ा है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से यह अपील की थी कि चुनाव आयोग को आधार कार्ड को मतदान के लिए वैध पहचान पत्र मानने का निर्देश दिया जाए। याचिका में तर्क दिया गया था कि कई ग्रामीण और गरीब मतदाताओं के पास वोटर आईडी कार्ड, पासपोर्ट या ड्राइविंग लाइसेंस जैसे दस्तावेज नहीं होते हैं, लेकिन उनके पास आधार कार्ड होता है। ऐसे में वे मतदान के अपने अधिकार का प्रयोग नहीं कर पाते।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला:
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि, “जब आधार कार्ड को विभिन्न सरकारी योजनाओं और वित्तीय लेन-देन के लिए एक वैध पहचान पत्र माना जाता है, तो इसे लोकतंत्र के सबसे महत्वपूर्ण कार्य, यानी मतदान के लिए भी स्वीकार किया जाना चाहिए।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार कार्ड को किसी भी मतदाता के लिए अनिवार्य नहीं किया जाएगा, बल्कि इसे केवल एक वैकल्पिक पहचान दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार किया जाएगा।
चुनाव आयोग पर असर:
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद, चुनाव आयोग को अपनी गाइडलाइंस में बदलाव करना होगा। अब मतदान केंद्रों पर आधार कार्ड को भी अन्य 11 दस्तावेजों के साथ स्वीकार किया जाएगा।
चुनाव आयोग द्वारा स्वीकृत 11 दस्तावेज़:
- वोटर आईडी कार्ड
- पासपोर्ट
- ड्राइविंग लाइसेंस
- सरकारी/सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों/सार्वजनिक लिमिटेड कंपनियों द्वारा जारी फोटोयुक्त पहचान पत्र
- बैंक/डाकघर पासबुक (फोटो के साथ)
- पैन कार्ड
- मनरेगा जॉब कार्ड
- स्वास्थ्य बीमा स्मार्ट कार्ड
- फोटोयुक्त पेंशन दस्तावेज़
- सरकारी जारी किया हुआ सर्विस आईडी कार्ड
- राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) के तहत जारी स्मार्ट कार्ड
इस फैसले के बाद, आधार कार्ड इन सभी 11 दस्तावेजों के अतिरिक्त एक 12वां विकल्प बन गया है। यह फैसला भारतीय लोकतंत्र में अधिक से अधिक लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।