भारतीय रुपये में शुक्रवार को बड़ी गिरावट दर्ज की गई, जिससे यह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने रिकॉर्ड सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया। रुपया 64 पैसे कमजोर होकर 88.29 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। इस साल भारतीय मुद्रा में 3% से अधिक की कमजोरी आई है, और इसका सबसे बड़ा कारण हाल ही में अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए नए टैरिफ बताए जा रहे हैं।
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गिरावट के मुख्य कारण
विदेशी मुद्रा बाजार के जानकारों का कहना है कि रुपये में आई इस भारी गिरावट की मुख्य वजह अमेरिकी प्रशासन द्वारा भारतीय निर्यातों पर लगाए गए 50% तक के भारी-भरकम टैरिफ हैं।
- अमेरिकी टैरिफ का असर: अमेरिका द्वारा भारतीय कपड़ा, रत्न और आभूषण जैसे उत्पादों पर 50% तक का टैरिफ लगाने से भारतीय निर्यातकों में घबराहट का माहौल है। इससे विदेशी निवेशकों में भी चिंता बढ़ी है, जिससे पूंजी की निकासी (Capital Outflow) हो रही है।
- डॉलर का मजबूत होना: इसके साथ ही, डॉलर इंडेक्स में भी लगातार मजबूती बनी हुई है। वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता के बीच निवेशक सुरक्षित निवेश के रूप में डॉलर को प्राथमिकता दे रहे हैं।
- विदेशी निवेशकों की बिकवाली: घरेलू शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) की लगातार बिकवाली ने भी रुपये पर दबाव बढ़ाया है।
आम जनता पर क्या होगा असर?
रुपये की कमजोरी का सीधा असर आम जनता की जेब पर पड़ता है।
- महंगाई बढ़ेगी: भारत कच्चे तेल का एक बड़ा आयातक है। रुपया कमजोर होने से कच्चा तेल महंगा हो जाएगा, जिससे पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ सकती हैं। इससे परिवहन और अन्य वस्तुओं की लागत भी बढ़ेगी, जिससे महंगाई में बढ़ोतरी होगी।
- आयातित वस्तुएं महंगी होंगी: विदेश से आयात की जाने वाली इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएं, स्मार्टफोन और अन्य सामान महंगे हो जाएंगे।
- विदेश यात्रा और पढ़ाई महंगी: विदेश में घूमने जाना या बच्चों को पढ़ने के लिए भेजना भी अधिक खर्चीला हो जाएगा, क्योंकि डॉलर खरीदने के लिए ज्यादा रुपये खर्च करने पड़ेंगे।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) इस स्थिति पर नजर बनाए हुए है और रुपये की गिरावट को रोकने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल कर बाजार में हस्तक्षेप कर सकता है।