नई दिल्ली: बिहार में वोटर लिस्ट के रिविजन पर सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। यानी  बिहार में वोटर लिस्ट के रिविजन का काम फिलहाल जारी रहेगा। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह सुझाव भी दिया है कि वह इस प्रक्रिया में आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर आई को भी प्रूफ माने। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। अब अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।

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सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, ‘‘हमारा प्रथम दृष्टया मानना है कि मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान आधार, मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड पर दस्तावेज के तौर पर विचार किया जा सकता है।’’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 10 विपक्षी दलों के नेताओं सहित किसी भी याचिकाकर्ता ने चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया पर अंतरिम रोक की मांग नहीं की है। उसने संबंधित याचिकाओं पर जवाब मांगा और सुनवाई की अगली तारीख 28 जुलाई तय की।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्वाचन आयोग 21 जुलाई तक इन याचिकाओं पर जवाबी हलफनामा दाखिल करे और इन पर प्रत्युत्तर 28 जुलाई तक दाखिल किए जाएं। शीर्ष अदालत की बेंच ने कहा कि उसे चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और ईमानदारी पर संदेह नहीं है, क्योंकि यह एक संवैधानिक दायित्व है, लेकिन इस प्रक्रिया का समय संदेह पैदा कर रहा है।

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हमें आपकी ईमानदारी पर संदेह नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी से कहा, ‘‘हमें आपकी ईमानदारी पर संदेह नहीं है, लेकिन कुछ धारणाएं हैं। हम आपको रोकने के बारे में नहीं सोच रहे हैं क्योंकि यह एक संवैधानिक दायित्व है।’’ द्विवेदी ने कहा कि 60 प्रतिशत मतदाताओं ने अपनी पहचान सत्यापित कर दी हैं और उन्होंने अदालत को आश्वासन दिया कि किसी को भी अपनी बात रखने का अवसर दिए बिना मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जाएगा। पीठ ने कहा, ‘‘हम किसी संवैधानिक संस्था को वह करने से नहीं रोक सकते जो उसे करना चाहिए। साथ ही, हम उन्हें वह भी नहीं करने देंगे जो उन्हें नहीं करना चाहिए।’’

वोटर लिस्ट रिविजन के समय पर सवाल

इससे पहले, पीठ ने बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के समय पर सवाल उठाते हुए निर्वाचन आयोग से कहा कि आपको पहले ही कदम उठाना चाहिए था, अब थोड़ी देर हो चुकी है। हालांकि, उसने इस दलील को खारिज कर दिया कि आयोग के पास इस कवायद को करने का कोई अधिकार नहीं है। अदालत  ने कहा कि विशेष गहन पुनरीक्षण की कवायद महत्वपूर्ण मुद्दा है, जो लोकतंत्र की जड़ों से जुड़ा है और यह मतदान के अधिकार से संबंधित है। चुनाव आयोग ने इस कवायद को न्यायोचित ठहराया और कहा कि आधार कार्ड ‘‘नागरिकता का प्रमाण’’ नहीं है।

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जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने बिहार में वोटर लिस्ट रिविजन में दस्तावेजों की सूची में आधार कार्ड पर विचार न करने को लेकर सवाल किया और कहा कि चुनाव आयोग का किसी व्यक्ति की नागरिकता से कोई लेना-देना नहीं है और यह गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है। द्विवेदी ने संविधान के अनुच्छेद 326 का हवाला देते हुए कहा कि प्रत्येक मतदाता को भारतीय नागरिक होना चाहिए और ‘‘आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है।’’ जस्टिस धूलिया ने कहा, ‘‘यदि आपको बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के अंतर्गत नागरिकता की जांच करनी है, तो आपको पहले ही कदम उठाना चाहिए था, अब थोड़ी देर हो चुकी है।’’

इस बीच, अदालत ने याचिकाकर्ताओं के वकीलों की इस दलील को खारिज कर दिया कि चुनाव आयोग के पास बिहार में ऐसी किसी कवायद का अधिकार नहीं है। पीठ ने कहा कि निर्वाचन आयोग जो कर रहा है वह संविधान के तहत आता है और पिछली बार ऐसी कवायद 2003 में की गयी थी। याचिकाकर्ताओं की दलीलों का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग को तीन प्रश्नों का उत्तर देना होगा, क्योंकि बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया ‘‘लोकतंत्र की जड़ से जुड़ी है और यह मतदान के अधिकार से संबंधित है।’’

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तीन मुद्दों पर जवाब मांगा

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से तीन मुद्दों पर जवाब मांगा कि क्या उसके पास मतदाता सूची में संशोधन करने, अपनायी गयी प्रक्रिया और कब यह पुनरीक्षण किया जा सकता है, उसका अधिकार है। द्विवेदी ने कहा कि समय के साथ-साथ मतदाता सूची में नामों को शामिल करने या हटाने के लिए उनका पुनरीक्षण आवश्यक होता है और SIR ऐसी ही कवायद है। उन्होंने पूछा कि अगर चुनाव आयोग के पास मतदाता सूची में संशोधन का अधिकार नहीं है तो फिर यह कौन करेगा? बहरहाल, निर्वाचन आयोग ने आश्वस्त किया कि किसी को भी अपनी बात रखने का अवसर दिए बिना मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जाएगा।

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Alok Kumar Srivastava
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