अमेरिकी l अमेरिकी  राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व वाली सरकार एक बार फिर H-1B और L-1 वीजा कार्यक्रमों में कठोर बदलाव लाने की तैयारी में है। हाल ही में वीजा के नए आवेदनों पर (लगभग लाख) का शुल्क लगाने के बाद, अमेरिकी सीनेट में द्विदलीय विधेयक पेश किया गया है, जिसका उद्देश्य इन वीजा कार्यक्रमों पर और प्रतिबंध लगाना है।

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यह सख्ती अमेरिका में उच्च-कुशल पेशेवरों को काम के लिए भेजने वाले प्रमुख देशों के लिए एक गंभीर झटका है।

1. भारत (India) 🇮🇳 पर सबसे गहरा असर

वीजा नियमो में बदलाव का सबसे अधिक और सीधा प्रभाव भारत पर पड़ेगा।

  • 70% से अधिक आवेदक: वीजा के सबसे बड़े लाभार्थी भारतीय पेशेवर हैं, जिनकी संख्या कुल स्वीकृत वीजा में से अधिक है।
  • आईटी कंपनियों पर दबाव: और जैसी भारतीय आईटी आउटसोर्सिंग कंपनियों का व्यापार मॉडल इन वीजा पर बहुत निर्भर करता है। फीस में भारी वृद्धि से उनके लिए अमेरिकी परियोजनाओं में कर्मचारियों को तैनात करना बहुत महंगा हो जाएगा।
  • ‘कम वेतन’ वालों के लिए मुश्किल: नई व्यवस्था में उच्च वेतन वाले आवेदकों को प्राथमिकता मिलेगी, जिससे एंट्री-लेवल के भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स और नए ग्रेजुएट्स के लिए अमेरिका में नौकरी पाना लगभग बंद हो जाएगा

2. अन्य प्रभावित देश

भारत के अलावा, कई अन्य देश भी इस सख्ती से प्रभावित होंगे, हालांकि उनकी संख्या भारतीयों की तुलना में कम है।

  • चीन (China) 🇨🇳: वीजा प्राप्त करने वाले दूसरे सबसे बड़े समूह में चीनी नागरिक शामिल हैं, खासकर तकनीकी और अनुसंधान क्षेत्रों में। उन पर भी नई फीस और सख्त मानदंडों का असर पड़ेगा।
  • फिलीपींस और वियतनाम: इन एशियाई देशों के तकनीकी और स्वास्थ्य सेवा पेशेवर भी और वीजा का उपयोग करते हैं और वे भी प्रभावित होंगे।
  • यूरोपीय देश: कुछ यूरोपीय देशों के उच्च-कुशल पेशेवर भी के माध्यम से अमेरिका जाते हैं। वीजा पर सख्ती से वे बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ प्रभावित होंगी, जिनके यूरोपीय देशों में बड़े कार्यालय हैं।

3. प्रमुख संभावित बदलाव और परिणाम

संभावित बदलाव विवरण मुख्य परिणाम
प्रवेश शुल्क नए वीजा आवेदकों के लिए एक बार का शुल्क। कंपनियों के लिए विदेशी कर्मचारियों को हायर करने की लागत कई गुना बढ़ जाएगी।
‘हाई सैलरी’ प्राथमिकता लॉटरी में उच्च वेतन वाले आवेदनों को वरीयता। अमेरिकी श्रमिकों के वेतन को कम करने की कोशिश करने वाली कंपनियों पर लगाम लगेगी।
वीजा सुधार इंट्रा-कंपनी ट्रांसफर वीजा पर निगरानी और प्रतिबंध बढ़ेंगे। भारतीय आईटी आउटसोर्सिंग फर्मों के लिए कर्मचारियों का स्थानांतरण मुश्किल होगा।
‘प्रोजेक्ट फायरवॉल’ श्रम विभाग द्वारा नियमों का दुरुपयोग करने वाली कंपनियों पर अचानक जाँच (Audits) और कड़ा जुर्माना। अनुपालन लागत बढ़ेगी और अमेरिकी नौकरियों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
‘ब्रेन ड्रेन’ कुशल पेशेवर कनाडा, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अवसरों की तलाश करेंगे। अमेरिका में नवाचार और तकनीकी विकास धीमा हो सकता है, जबकि अन्य देशों को फायदा मिलेगा।

 

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Alok Kumar Srivastava
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