दिल्ली: देश में उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज है, लेकिन इसी बीच ओडिशा की बीजू जनता दल (BJD) और तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति (BRS) ने एक बड़ा फैसला लिया है। दोनों ही पार्टियों ने ऐलान किया है कि उपराष्ट्रपति चुनाव में उनके सांसद किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देंगे और वे मतदान प्रक्रिया से दूर रहेंगे। इस फैसले से विपक्षी खेमे को बड़ा झटका लगा है, जबकि सत्ताधारी भाजपा (NDA) को इसका सीधा फायदा मिलने की संभावना है।

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BJD और BRS का फैसला और वजह:

  • बीजू जनता दल (BJD): ओडिशा के मुख्यमंत्री और BJD प्रमुख नवीन पटनायक ने घोषणा की है कि उनकी पार्टी उपराष्ट्रपति चुनाव से तटस्थ रहेगी। पार्टी का तर्क है कि दोनों ही उम्मीदवारों के पास पर्याप्त संख्या बल है और उनके वोट देने या न देने से नतीजों पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। इसके अलावा, BJD का रुख हमेशा से ही केंद्र सरकार के प्रति नरम रहा है, और वे किसी भी पक्ष को नाराज नहीं करना चाहते।
  • भारत राष्ट्र समिति (BRS): तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री और BRS प्रमुख के. चंद्रशेखर राव ने भी यही फैसला लिया है। BRS का मानना है कि दोनों ही उम्मीदवार उनकी पार्टी की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते। पार्टी सूत्रों के अनुसार, वे भाजपा और कांग्रेस दोनों से दूरी बनाए रखना चाहते हैं।

किसे होगा फायदा?

BJD के पास लोकसभा में 12 और राज्यसभा में 9 सांसद हैं, जबकि BRS के पास लोकसभा में 9 और राज्यसभा में 7 सांसद हैं। दोनों पार्टियों के कुल 37 सांसद हैं। इन 37 सांसदों के वोट नहीं देने से चुनाव पर सीधा असर पड़ेगा।

  • NDA को फायदा: NDA उम्मीदवार को सीधे तौर पर इसका फायदा मिलेगा। उपराष्ट्रपति चुनाव में जीत के लिए बहुमत का आंकड़ा कम हो जाएगा। इन दोनों पार्टियों के सांसदों के वोट न देने से, NDA को जीत के लिए कम सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी।
  • विपक्ष को झटका: विपक्ष, जो एकजुट होकर सत्ताधारी उम्मीदवार को चुनौती देने की कोशिश कर रहा था, उसे इस फैसले से बड़ा झटका लगा है। इन सांसदों के समर्थन की कमी से उनके उम्मीदवार की जीत की संभावना कम हो जाएगी।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला BJD और BRS दोनों की अपनी रणनीतियों का हिस्सा है। ये पार्टियां न तो सीधे तौर पर भाजपा का समर्थन करना चाहती हैं और न ही विपक्षी खेमे के साथ खुलकर जाना चाहती हैं। वे भविष्य की राजनीति में अपनी भूमिका को बनाए रखने के लिए तटस्थ रहना पसंद करती हैं।

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Alok Kumar Srivastava
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